पू्र्व कप्तान अजीत पाल बोले- बलबीर सिंह कभी गुस्सा नहीं होते थे, उनके मैनेजर रहते हम पहली बार पाकिस्तान को हराकर वर्ल्ड चैम्पियन बने थे
- बलबीर सिंह की कप्तानी में भारत ने 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक में गोल्ड जीता था
- अजीतपाल सिंह ने कहा- बलबीर सिंह को भारत रत्न देना देश की तरफ से उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी

राजकिशोर
May 25, 2020, 03:57 PM IST
आजादी के बाद भारतीय हॉकी के सबसे बड़े खिलाड़ियों में शुमार रहे बलबीर सिंह सीनियर का सोमवार को चंडीगढ़ में निधन हो गया। वे लगातार तीन ओलिंपिक लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) में गोल्ड जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य रहे थे।
हॉकी के पूर्व खिलाड़ियों को उनके जान का दुख है। इसमें इकलौता हॉकी वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम के कप्तान अजीत पाल सिंह और महिला हॉकी टीम के कोच रहे एमके कौशिक भी हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में उन्होंने बलबीर सिंह के व्यक्तित्व, उनके खेल से जुड़ी कई खास बातें बताईं…
अजीत पाल सिंह ने बताया कि मैं कभी बलबीर सिंह सीनियर के साथ तो नहीं खेला। लेकिन तीन बड़े टूर्नामेंट में उनके साथ जाने का मौका मिला। वे 1971, 1975 वर्ल्ड कप और 1970 एशियन गेम्स में भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर थे। मैं 1971 और 1975 में हॉकी वर्ल्ड कप में टीम का कप्तान था। ऐसे में मुझे उन्हें करीब से जानने का मौका मिला। वे काफी मिलनसार और शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। मैंने उन्हें कभी गुस्से में किसी से बात करते नहीं देखा था।
बलबीर की हौसलाअफजाई के दम पर हम पहली बार वर्ल्ड चैम्पियन बने
अजीत बताते हैं कि मुझे 1975 का वर्ल्ड कप याद आता है कि कैसे उन्होंने टीम को एकजुट किया और यह विश्वास दिलाया कि हम वर्ल्ड चैम्पियन बन सकते हैं। तब उनकी हौसलाअफजाई के दम पर हम पहली बार फाइनल में पाकिस्तान को 2-1 से हराकर वर्ल्ड चैम्पियन बने थे। इसके बाद हम आज तक विश्व कप नहीं जीत सके।
उस टूर्नामेंट को याद करते हुए अजीतपाल कहते हैं कि लीग स्टेज में अर्जेंटीना से 1-2 से हारने के बाद टीम मायूस थी। हम पर वर्ल्ड कप से बाहर होने का खतरा मंडरा था। तब बलबीर सिंह ने टीम का आत्मविश्वास जगाया। वे सभी खिलाड़ियों को नाश्ते के लिए बाहर ले गए। कोच गुरचरण सिंह भी साथ थे।
‘तब उन्होंने कहा था कि भूल जाओ कि पिछले मैच में क्या हुआ, अब हमें वेस्ट जर्मनी से खेलना है और मैं जैसा बता रहा हूं, अगर वैसा खेले तो हम 2 गोल से ज्यादा के अंतर से मैच जीतेंगे। नतीजा भी ऐसा ही आया। हम जर्मनी को 3-1 से हराकर सेमीफाइनल में पहुंचे। आखिरी चार के मुकाबले में हमने मेजबान मलेशिया को एक्स्ट्रा टाइम में 3-2 से हराया और फिर फाइनल में पाकिस्तान से सामना हुआ।’

‘बलबीर सिंह सीनियर को खेल के बारे में काफी नॉलेज था’
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान बताते हैं कि उन्हें (बलबीर) खेल के बारे में कॉफी नॉलेज था। वे हर अहम मैच से पहले और बाद में खिलाड़ियों को उनकी कमियों के बारे में बताते थे।
‘ध्यानचंद और बलबीर सिंह भारतीय हॉकी के स्टार
अजीत कहते हैं कि मेरी नजरों में भारतीय हॉकी के दो स्टार रहे हैं। एक मेजर ध्यानचंद और दूसरे बलबीर सिंह। ये दोनों ही फादर ऑफ हॉकी हैं। बलबीर जी, तो ध्यानचंद के 20 साल बाद भारतीय टीम में शामिल हुए थे। लेकिन दोनों का खेल शानदार था। उनका स्टिक वर्क गजब का था।

‘वे बताते हैं कि मैंने कभी बलबीर सिंह के साथ नहीं खेला है। लेकिन उनके साथ खेल चुके लोगों की मानें तो अगर तीस यार्ड सर्किल के करीब उनके पास गेंद आ जाती थी, तो ज्यादातर मौकों पर वे गोल करने में कामयाब रहते थे।’
बलबीर सिंह को भारत रत्न मिलना चाहिए: अजीतपाल
अजीत कहते हैं कि जब सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिल सकता है, तो मेजर ध्यानचंद और बलबीर सिंह को भी देश का सबसे बड़ा सम्मान मिलना चाहिए। यह दोनों ऐसे समय में खेले, जब स्पोर्ट्स में बहुत ज्यादा पैसा नहीं था। इन्हें शाबासी के अलावा कुछ नहीं मिला। बलबीर सिंह को मरणोपरांत ही सही, अगर यह सम्मान मिलता है तो देश की ओर से उन्हें इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती।’
मेरे करियर में उनका बड़ा योगदान: एमके कौशिक
महिला हॉकी टीम के कोच रहे एम.के कौशिक ने बलबीर सिंह को याद करते हुए कहते हैं कि जब वे सिलेक्शन कमेटी में थे। उन्होंने मुझे भारतीय टीम में मौका दिया था। मेरा चयन उन्होंने ही किया था। तब भारतीय टीम का कैम्प पाटियाला में लगता था। वह ग्राउंड पर आकर खिलाड़ियों को हमेशा गाइड करते थे। मेरा मानना है कि हॉकी में भी कई पूर्व खिलाड़ी भारत रत्न के हकदार हैं, उनमें से बलबीर सिंह भी एक हैं।